देहरादून। दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र की ओर से उत्तराखण्ड राज्य स्थापना दिवस पर रजत जयंती समारोह के अन्तर्गत आज दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र परिसर में उत्तराखण्ड के लोक संगीत व कला से जुड़े विविध कार्यक्रम आयोजित किये गये। इन सभी आयोजनों में बड़ी संख्या में लोग उपस्थित रहे।
प्रातःकालीन सत्र में शास्त्रीय संगीत के निकष पर गढ़वाली लोक संगीत विषय पर पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त संस्कृतिकर्मी डॉ. माधुरी बड़थ्वाल ने व्याख्यात्मक प्रस्तुति दी। इस सत्र में डॉ. माधुरी बड़थ्वाल ने गढ़वाल अंचल के लोक संगीत पर गहनता से प्रकाश डाला। उन्होनें लोक संगीत के विविध पक्षों के सन्दर्भ में गायन के माध्यम से जानकारी दी। लोक संगीत किसे कहते हैं, गढ़वाल के लोक संगीत के अंतर्गत कौन कौन सी विधाएं प्रचलन में हैं तथा लोकगीतों व संगीत का क्या सामाजिक व सांस्कृतिक महत्व है इस पर बातचीत की। डाॅ. माधुरी ने गढ़वाली लोक संगीत की पारम्परिक विशेषताओं और वर्तमान स्थिति को भी उजागर करने का प्रयास किया।
वहीं सायंकालीन सत्र में उत्तराखण्ड के समाज में प्रचलित लोकगीतों की विविधता और उसके स्वरुप पर सुपरिचित गायिका उप्रेती सिस्टर्स-ज्योति उप्रेती सती और नीरजा उप्रेती द्वारा संगीतमय प्रस्तुति दी गयी। कार्यक्रम में उप्रेती सिस्टर्स ने उत्तराखंड के पारंपरिक लोकगीत- न्यौली, खेल, झोड़ा, चाँचरी, रासो, हारुल, सदेई, बाजुबंद, छपेली, संस्कार गीत (शकुनाखर और मांगल) देव स्तुतियाँ, खुदेड़ गीत, चैती, लोकगाथा “सातूँ- आँठू” सहित अन्य लोकगीतों की शानदार प्रस्तुतियां दीं।
उप्रेती सिस्टर्स के गाये गीतों में ’मेरी माया राखि राख्ये देलि सांगाड़ुनी, चम चम चमकन्या क्या हो,’ ’ओ छमा पिनुरी का धुरा देवी’, ’ज्ञानसु लगी घुंड्यु बाँधी’ ’रासो नरु- बिजौला’, ’मोड़ाये मोड़ा रे मोड़ाईये रे केरिमो’, ’बीजी जावा नौखंडी नरसिंह’, ’अय्यो बैना बृखबन अनमौलि में मोखना’, ’हे ऊँचि डांड्यों तुम निसि जावा’, ’ल्याओ चेलियो धतुरी का फूल’, ’हापुरा बजानी’ तथा ’तिलगा तेरी लंबी लटी टसर का फुना’, लोकगीतों को दर्शकों ने मंत्र मुग्ध होकर सुना। इन दोनों उप्रेती सिस्टर्स के साथ रामचरण जुयाल ने हुड़का और मोरछंग( बिणईं) में, अमित डंगवाल ने ढोलक में व रुकमेश नौटियाल ने बांसुरी में जोरदार संगत दी।
उल्लेखनीय है कि उप्रेती सिस्टर्स उत्तराखंड के पारम्पिरक लोकसंगीत , लोकसंस्कृति और भारतीय संस्कृति के लिये निरन्तर कायर्रत हैं। इनमें ज्योति उप्रेती सती बड़ी बहन और नीरजा उप्रेती छोटी बहन हैं। एक एक पेशेवर गायिका, संगीतकार और गीतकार के तौर पर ये दोनों लोकप्रिय रही हैं।संयुक्त रूप से उत्तराखंड के पारम्पिरक लोकगीत जो जनमानस के बीच से विलुप्त हो रहे हैं उन्हें गायन के माध्यम से लोगों के मध्य प्रसारित करते हुए संरिक्षत व संवर्धित करने का अभिनव प्रयास कर रहे हैं। उप्रेती सिस्टर्स का कहना है कि लोक हृदय से निकले हुवे मौखिक, सहज एवं स्वाभाविक उदगारों को आदर भाव देना अति आवश्यक है। लोकगीतों को गाकर व सहेजकर उस परम्परागत विरासत को जीवित रखने का हमारा प्रयास बना रहेगा जिसकी अनुभूति ही हमारी असल पहचान है।
दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के मुख्य सभागार में आयोजित इन दोनों कार्यक्रमों का संयुक्त संचालन पूर्व मुख्य सचिव उत्तराखण्ड व वर्तमान मुख्य सूचना आयुक्त राधा रतूड़ी, तथा पूर्व पुलिस महानिदेशक, उत्तराखण्ड अनिल रतूड़ी ने शानदार तरीके से किया। अपने संयुक्त वक्तव्य में उन्होंने माधुरी बड़थ्वाल और उप्रेती सिस्टर्स को उत्तराखंड के पारम्पिरक लोकसंगीत व लोक संस्कृति को अपने गायन के माध्यम से संरक्षित करने तथा जन मानस में उसे लोकप्रिय बनाने के लिएकिये गये व्यक्तिगत प्रयासों के लिए साधुवाद दिया। कार्यक्रम के आरम्भ में इन दोनों सत्रों में प्रस्तुति देने वाले सभी कलाकार अतिथियों का पुष्प गुच्छ व शाॅल ओढ़ाकर सम्मान भी किया गया। इन दोनों सत्रों में उपस्थित लोगों ने सवाल-जबाब भी किये.
सायंकालीन सत्र में ही दून पुस्तकालय परिसर के एम्फीथियेटर में प्रसिद्ध पुतुल कलाकार रामलाल भट्ट द्वारा 5 से 18 वर्ष तक आयु वर्ग के बच्चों के लिए आकर्षक रुप से कठपुतली प्रदर्शन का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में रामलाल ने सरल व सहज तौर पर बच्चों को कठपुतली के किरदारों के माध्यम से कहानी वाचन की शानदार प्रस्तुति दी। रामलाल ने इस अवसर पर कहा कि इस तरह के कठपुतली प्रदर्शन के माध्यम से बच्चों को अपने अन्दर कहीं न कहीं संचार, रचनात्मक और नाट्य अभिव्यक्ति व कौशल विकसित करने का अवसर मिलता है। समाज में इस तरह के प्रयासों को किये जाने की जरुरत हमेशा होनी चाहिए।
इन विविध आयोजनों के अवसर पर पूर्व मुख्य सचिव एन. एस नपलच्याल, भारती पाण्डे, कमल रजवार, डॉ. शिवमोहन सिंह, हिमांशु आहूजा, सुमन भारद्वाज, माया तिवारी, कमला पंत, जादीश बाबला, जय भगवान गोयल, डॉ. वी के डोभाल, सुंदर सिंह बिष्ट, जय भगवान गोयल, कर्नल शैलेन्द्र सिंह रौतेला, मेघा विल्सन, शैलेन्द्र नौटियाल,मधन सिंह, जगदीश सिंह महर,हर्षमणि भट्ट सहित अनेक संस्कृति कर्मी, साहित्यकार ,लेखक, सामाजिक अध्येता,छात्र, बच्चे, युवा पाठक और शहर के अनेक लोग उपस्थित रहे।

