नई दिल्ली। बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर सियासी बवाल मचा हुआ है। वहीं, गैर-सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स ने भारतीय चुनाव आयोग द्वारा विशेष गहन पुनरीक्षण के दौरान मतदाता सूची में शामिल करने के लिए आधार, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड को वैध स्वतंत्र प्रमाण के रूप में स्वीकार करने से इनकार करने पर सवाल उठाया है।
सुप्रीम कोर्ट में इस एनजीओ का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता प्रशांत भूषण और नेहा राठी ने किया। एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में दायर एक प्रतिउत्तर में दावा किया कि विधानसभा चुनावों से पहले एसआईआर के कारण लाखों मतदाताओं को मताधिकार से दूर होने का बड़ा खतरा है।
जस्टिस सूर्यकांत और जॉयमाल्या बागची की बेंच नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले बिहार में किए जा रहे एसआईआर को चुनौती देने वाली याचिका पर 28 जुलाई, 2025 को सुनवाई कर सकती है। इस महीने की शुरुआत में, सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से एसआईआर के लिए इन तीन दस्तावेजों, आधार, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड पर विचार करने को कहा था।
अदालत ने कहा था कि ये दस्तावेज मतदाताओं के सत्यापन के लिए चुनाव निकाय द्वारा सूचीबद्ध 11 दस्तावेजों, जिनमें निवास और जाति प्रमाण पत्र शामिल हैं, में से कोई भी प्राप्त करने के लिए आधारभूत रिकॉर्ड हैं। हालांकि, चुनाव आयोग ने अदालत में दायर अपने लिखित जवाब में तर्क दिया कि मतदाता फोटो पहचान पत्र (ईपीआईसी) और राशन कार्ड आसानी से नकली हो सकते हैं।
एनजीओ ने कहा कि यह ध्यान देने योग्य है कि अनुमोदित सूची में शामिल 11 दस्तावेज भी नकली या झूठे दस्तावेजों के आधार पर प्राप्त किए जा सकते हैं, जिससे चुनाव आयोग का तर्क निराधार, असंगत और मनमाना साबित होता है। आधार को 11 दस्तावेजों की सूची से बाहर रखने का बचाव करते हुए, चुनाव आयोग ने कहा कि यह आर्टिकल 326 के तहत मतदाताओं की पात्रता की जांच में मदद नहीं करता है और यह केवल व्यक्ति की पहचान का प्रमाण है।
बिहार में आधार, वोटर आईडी और राशन कार्ड स्वीकार नहीं करने पर मचा बवाल

Leave a comment
Leave a comment