संत राजिंदर सिंह जी महाराज
14 फरवरी सेंट वेलेन्टाइन डे के रूप में मनाया जाता है। इसके विषय में एक कहानी प्रचलित है कि संेट वेलेन्टाइन बच्चों से बहुत प्रेम करते थे। एक बार सेंट वेलेन्टाइन को जेल में बंद कर दिया गया और उनके चहेते बच्चे यह सहन नहीं कर पाए। इन बच्चों ने कागज़ के छोटे-छोटे टुकड़ों पर अपनी कोमल भावनाओं को अंकित किया एवं जेल की सलाखों में से उन तक पहुँचाया। कदाचित यहाँ से प्रेम से परिपूर्ण भावनाओं के आदान-प्रदान का सिलसिला आरम्भ हुआ जो अब तक समय के अनुसार कई रूप बदल चुका है।
यद्यपि आज के युग में वेलेन्टाइन डे प्रेमी और प्रीतम के बीच का ही एक उत्सव रह गया है, परन्तु इसका भी एक अध्यात्मिक पहलू है। वेलेन्टाइन डे संत वेलेन्टाइन व उनके शिष्योें के बीच प्रेम का प्रतीक है, ये प्रतीक है अध्यात्मिक प्रेम का जो कि एक गुरू और शिष्य के बीच या प्रभु व भक्त के बीच होता है जो कि एक इंसान का पूरी सृष्टि व मानवता के लिये होता है।
हमारा इंसान होने का परम लक्ष्य, अपने आप को जानना और परम पिता परमात्मा को पाना है, ये लक्ष्य को प्राप्त करने का साधन प्रेम ही है। सिक्खों के दसवे गुरू, गुरू गोविंद सिंह जी महाराज ने फ़रमाया हैः ’’साच कहु सुन लहो सभेह, जिन् प्रेम कीयो तिन हि प्रभ पायो।’’
परमात्मा प्रेम स्वरूप है, हमारी आत्मा परमात्मा की अंश होने के नाते वही सारे गुण रखती है जो परमात्मा के है, ऐसे हमारी आत्मा भी प्रभु प्रेम का ही अंश है, और परमात्मा को पाने का रास्ता भी प्रेम का ही रास्ता है।
प्रश्न यह उठता है कि यह प्रेम मिलता कहाँं से है? इस दिव्य प्रेम की किरणें एक पूर्ण महापुरूष की प्रभु प्रेम में मदमस्त आँखों से हम तक आती है, हमारी सदियों से सोई आत्मा को धीरे-धीरे जाग्रत करती हैं और चेतनता के
महासागर तक की यात्रा पूर्ण करवाती है। वास्तव में स्वयं परमात्मा ही संत सत्गुरू के रूप में अपने अंशों को वापिस ले जाने के लिए इस धरा पर आते हैं। संत सत्गुरू इन्हें जगाने के लिए मात्र प्रेम का प्रयोग करते है।
यह सामर्थ्य केवल एक संत सत्गुरू में होती है कि प्रेम का पात्र बदलकर किसी हृदय को परमार्थ की राह पर चला दे। संत सत्गुरू के अनन्त प्रेम का अनुभव पाकर ही आत्मा भय, भ्रम और द्वैत की जकड़न से मुक्त हो सकती है।
सदियों से संत महापुरूष प्रभु प्रेम वे गुरू प्रेम को अत्याधिक महत्ता देते आये है। ईसाई धर्म के प्रमुख संत ईसा मसीह का भी मूल संदेश, प्रेम का संदेश था। ईसा ने अपने शिष्यों को जो महान संदेश दिया उसको दो आज्ञाओं में समेट सकते हैः
‘‘आप अपने प्रभु को पूर्ण हृदय से, पूर्ण आत्मा से तथा पूरे मन से प्यार करें।’’ और अपने पड़ोसी को आप अपने जैसा प्यार करें।’’ और उन्होंने स्पष्ट किया, इन दो आज्ञाओं पर ही सभी नियम और पैगम्बर आधारित होते है।
(मैथ्यू – 22ः37, 39ः40)
ईसा ने इन दो आज्ञाओं को केवल दिया ही नहीं, बल्कि वे इनके अनुसार जिये भी। यही संतो की सच्ची विशेषता है क्योंकि वे प्यार की प्रतिमूर्ति होते हैं।
प्रभु प्रेम है, हमारी आत्मा उस प्रेम की एक किरण है और प्रेम एक और तो प्रभु और मनुष्यों के बीच, तथा दूसरी ओर मनुष्यों तथा प्रभु की सृष्टि के बीच एक सूत्र है। प्रेम जीवन और प्रकाश के नियम की पूर्णता है।
आइये, हम सोचें कि क्या हमारे जीवन में यह प्यार झलकता है? क्या हम एक दूसरे की प्यार से सेवा करते हैं? क्या हम उनके प्रति उदार तथा सहनशील हैं, जिनके विचार हमसे भिन्न होते हैं? क्या हम प्रभु के सभी जीवों से प्यार करते हैं तथा क्या हम सबको अपना समझ कर गले लगाने के लिए तैयार हैं? क्या दलितों के प्रति हममें दया और सहानुभूति है? क्या हम बीमारों और पीड़ितों के लिए प्रार्थना करते हैं? यदि हम प्यार से नहीं रहते, तो अभी हम प्रभु से काफी दूर हैं तथा धर्म से परे हैं। यदि हम सही मायने में प्रभु से प्रेम करते हैं तो हमें यह हमें अपने आचरण में भी लाना होगा।
इस वेलेन्टाइन डे के अवसर पर क्यों न हम भौतिक प्रेम से ज्यादा आध्यात्मिक प्रेम की और ध्यान दें। अपने आप को एक प्रेम पूर्ण इंसान बनाये जो कि पूरी मानवता के प्रति, सारी सृष्टि के प्रति प्रेम व करूणा का भाव रखता है। वेलेन्टाइन डे मनाने का यही सर्वोत्तम तरीका होगा।

