संत राजिन्दर सिंह जी महाराज
अक्सर हमें अपने जीवन में अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। कभी हमें कोई बीमारी हो जाती है, कभी आर्थिक तो कभी संबंधों में समस्या या कभी हमारी ख्याति नष्ट हो जाती है। कभी-कभी हमें बुरे समय का सामना भी करना पड़ता है और जिससे हम समस्याओं के अंधकार में डूब जाते हैं लेकिन संत-महापुरुष हमें समझाते हैं कि उस अंधकार में हमें खोना नहीं चाहिए।
जब कभी भी हम महसूस करें कि हम अपने जीवन के अंधेरे के दौर में जी रहे हैं तो हमें सिर्फ अपनी आत्मा की ज्योति पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि पिता-परमेश्वर का अंश होने के नाते हमारी आत्मा ज्योति-स्वरूप हैं। हमारा असली स्वरूप आत्मा ज्योति से भरपूर है। अगर हम सिर्फ अपनी असली स्वरूप को जान जाएं तो हम पाएंगे कि हमारी ज़िंदगी में कोई अंधकार ही नहीं रहेगा। अगर हम अपनी आत्मा की ज्योति को अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में शामिल कर लें तो हम कभी भी ज़िंदगी के अंधेरे से निराश नहीं होंगे।
हम सभी के अंतर में आत्मा की ज्योति है जिसके बारे में संतों-महापुरुषों ने बयान किया है कि उस ज्योति का प्रकाश बाहरी दुनिया सौलह सूर्यों के बराबर है लेकिन हम उससे अंजान हैं क्योंकि हम अंधकार और माया से परिपूर्ण बाहरी संसार से फंसे हुए हैं। अगर हम ध्यान-अभ्यास के द्वारा अपने ध्यान को अंतर की ओर कर लें तो हम अनुभव करेंगे कि हम ज्योति-स्वरूप हैं। जब कभी भी हमारे जीवन में अंधेरे का वक्त हमें निराश करने की कोशिश करेगा, तब हम अपने अंतर में जाकर ज्योति का अनुभव कर उस अंधेरे दूर कर सकते हैं।
जब भी हम बीमारी, आर्थिक समस्या, बदनामी या किसी हानि का सामना करें तो हमें यह याद रखना चाहिए कि ये कठिनाईयाँ चमकदार आकाश में क्षणिक बादलों की भाँति हैं। जिस तरह काले-घने बादलों के पार सूरज की रोशनी छुपी होती है लेकिन कुुछ समय बाद सूरज चमकने लगता है। ठीक उसी तरह हमारे जीवन में आने वाली समस्याएं धीरे-धीरे अपने आप ही चली जाएंगी। जैसा कि कहा गया है कि, “यह समय भी बीत जाएगा।”
जब हम इस संसार के क्षणभंगुर जड़ पदार्थों से जुड़ जाते हैं तो हमें दुःख होता है लेकिन जब हम यह अनुभव कर लेते हैं कि बाहरी घटनाएँ स्वप्न की भाँति हैं, एक क्षणिक और अस्थायी नाटक के जैसे हैं तो हम दुःख और निराशा से ऊपर उठ जाते हैं। हमारी असलियत यानि हमारी आत्मा प्रभु की ज्योति और प्रेम भरपूर है। जब कभी हम अपने जीवन में उदास हों तो हम अपने ध्यान को अंतर में लगाए रखना चाहिये।
जब कभी हमें लगे कि हम कठिनाईयों के दौर से गुज़र रहे हैं तो हमें यह देखना चाहिए कि हमारे चारों ओर ऐसे बहुत से लोग हैं जो हमसे भी अधिक दुःखी या खराब परिस्थितियों से गुज़र रहे हैं। तब हम देखेंगे कि ऐसी स्थिति में हमारे अंदर से खुद-ब-खुद पिता-परमेश्वर का शुक्राना अदा करने के भाव जागृत होंगे और साथ ही साथ हमारे अंदर संतुष्टि की भावना भी पैदा होगी। साथ ही साथ जब हम असफल हो जाएं तो हम अपनी गलतियों से सीखें और हम कोशिश करें कि वह गलतियाँ दोबारा न हों। जब हम स्वयं को अंधकार में पाएं तो हम अपनी आँखें बंद करें और अंतर में एकाग्र हो जाएं, जब तक कि हम अपने अंतर में ज्योति का अनुभव न कर लें। वह ज्योति अपने साथ शांति, खुशी और प्रेम लाएगी। यह हमें आराम देगी और हमें आगे बढ़ने के लिए साहस देगी। अगर हम उस ज्योति को अपने जीवन में ले आएँ तब हमारी ज़िंदगी में कोई अंधकार नहीं रहेगा।
तो आईये इस अपने जीवन के इस अंधेरे से मुक्ति पाने के लिए हम प्रतिदिन ध्यान-अभ्यास में समय दें ताकि हम अपने भीतर ज्योति का अनुभव करें, जो अंतर में हमारा इंतजार कर रही है। उस वक्त हम विचारों के अंधकार से विचलित न हों बल्कि हम शांति और प्रभु के प्रेम का अनुभव करें जो हर वक्त हमारे भीतर प्रकाशित है।