निशांत भारती
देहरादून। उत्तराखण्ड में पहाड़ से मैदान तक जंगली जानवरों ने लोगों का जीना दुश्वार कर दिया है। दिन-प्रतिदिन मानव-वन्यजीवों के संघर्ष की घटना बढ़ती जा रही है। राज्य सरकार और वन विभाग की लाख कोशिशों के बाद अभी तक मानव-वन्यजीव संघर्ष के मामलों पर रोक नहीं लगाई जा सकी है। जिसके कारण लोगों की चिंताएं बढ़ती जा रही है। अगर बीते कुछ दिनों की बात करें तो उत्तराखण्ड में पहाड़ से मैदान तक कई ऐसी घटनाएं हो चुकी है जिसमें कई की जान जा चुकी हैं।
उत्तराखंड के उत्तरकाशी, श्रीनगर, पौड़ी, कोटद्वार, देहरादून या फिर हरिद्वार की बात करें तो जंगलों के आसपास क्षेत्रों में लोगों ने कूड़े के ढेर लगा रखे हैं। अब इन कूड़े के ढ़ेंरों पर कुत्ते आए दिन अपने भोजन की तलाश में आते रहते है जिससे बाघ व गुलदार भी अपने भोजन की तलाश में जंगल से नीचे आ रहे है । जिसके कारण इस तरह की घटनाएं हो रही हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जंगल में क्या हालात होंगे। उन्होंने कहा छोटे शाकाहारी जानवरों की संख्या भी बेहद कम हो गई है। पहले आसानी से जानवरों को शिकार मिल जाता था। कक्क्ड़, खरगोश,हिरण,जंगली मुर्गा की संख्या कम हो गई है। जिसके कारण, टाइगर, बाघ को खाने की तलाश में रिहायशी इलाकों की ओर रुख करना पड़ रहा है।
सरकारी आंकड़ें भी इस बात को स्वीकार करते हैं। राज्य में जंगली जानवरों का आतंक लगातार बढ़ता जा रहा है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि बीते 23 सालों में मानव-वन्यजीव संघर्ष में 1,115 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। यह आंकड़े साल 2023 अक्टूबर तक के हैं। नवंबर से दिसंबर की बात की जाए तो लगभग 7 लोग अब तक जंगली जानवरों का शिकार हुये हैं। उत्तराखण्ड में पिछले 23 सालों में 5451 बार लोगों पर जानवरों ने हमला किया है। उत्तराखंड में लेपर्ड के हमलों में 515 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। हाथी की हमलों में 212 लोगों की जान गई है। बाघ के हमलों में 79 लोगों की जान गई है। उत्तराखंड मेंआदमखोर गुलदार भले ही मार दिए गए हों लेकिन कई गुलदार ऐसे भी हैं जो शिकारियों के हत्थे ही नहीं चढ़े। हालांकि कुछ पकड़े गए गुलदार आदतन आदमखोर ना होने के कारण वापस जंगलों में छोड़ दिए गए। उत्तराखंड में 35 आदमखोर गुलदार और 1 बाघ मारे जा चुके हैं। उत्तराखंड में गुलदारों की संख्या 650 से बढ़कर 840 हुई थी। उत्तराखंड को गुलदारों की संख्या के लिहाज से देश का 5वां बड़ा राज्य माना गया।