लखनऊ :लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर उत्तर प्रदेश में अमेठी की सीट इस बार जितनी महत्वपूर्ण होने जा रही है, शायद पहले कभी रही हो. वर्ष 2019 में अमेठी में स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को हराकर इस सीट पर कांग्रेस के सालों पुराने वर्चस्व को तोड़ दिया था. इसके बाद में पिछले पांच साल से लगातार स्मृति ईरानी के सक्रिय होने के बावजूद इस बार हालात कुछ बदले हुए हैं.
अमेठी में एक बार फिर राहुल गांधी के प्रति सहानुभूति नजर आ रही है. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी भी भांप गई है कि मुकाबला कांटे का होने जा रहा है. इसलिए दीवाली का मौका चुनावी शोर की शुरुआत वाला हो गया. लगभग 5000 लोगों तक राहुल गांधी का जब दीवाली गिफ्ट पहुंचा तो बदले में स्मृति ईरानी का दीवाली गिफ्ट करीब एक लाख लोगों तक पहुंच चुका है.
अमेठी सीट पर सबसे पहली बार राहुल गांधी ने 2004 में चुनाव लड़ा था और आसान जीत दर्ज की. वर्ष 2009 के चुनाव में राहुल गांधी को उससे भी बड़ी जीत मिली और वह करीब साढ़े लाख वोटो से जीते थे. 2014 में जब पूरे देश में मोदी मैजिक चल रहा था. तब पहली बार आम आदमी पार्टी की ओर से कुमार विश्वास ने राहुल गांधी के खिलाफ कुछ माहौल तैयार किया था. मगर भाजपा ने स्मृति ईरानी को मैदान में उतारा तो मुकाबला त्रिकोणीय हो गया और राहुल गांधी को अपने सबसे छोटी जीत मिली.
इस बार भी केवल सवा लाख वोटो से जीते थे मगर स्मृति ईरानी ने अमेठी को नहीं छोड़ा और वह लगातार क्षेत्र में काम करती रहीं. दूसरी ओर राहुल गांधी के प्रतिनिधि से अमेठी वासियों को यह शिकायत थी कि वे चंद लोगों की बातें सुनते हैं. उनके ही काम करते हैं और राहुल गांधी और मतदाता के बीच दीवार बने हुए हैं. दूसरी और राहुल गांधी के अमेठी से संपर्क न करने का खामियाजा भी उनको भुगतना पड़ा.
अमेठी में अपनी संभावित हार की आशंका राहुल गांधी को पहले से ही हो गई थी. इसलिए उन्होंने केरल के सुरक्षित माने जाने वाले लोकसभा क्षेत्र वायनाड से भी पर्चा भर दिया था. उनके इस राजनीतिक दांव का उल्टा प्रभाव अमेठी पर पड़ा नतीजा यह रहा कि राहुल गांधी अमेठी में यह चुनाव लगभग 55 हजार वोटों से हार गए.
केंद्रीय मंत्री और सांसद स्मृति ईरानी अपने क्षेत्र में लगभग हर महीने आती हैं. एक से दो दिन तक वह क्षेत्र में रख कर विकास कार्यों का लोकार्पण शिलान्यास और लोगों से मुलाकात करती हैं. इसके बावजूद स्थानीय लोगों के बीच में यह शिकायत है कि उनके प्रतिनिधि वही व्यवहार कर रहे हैं जो राहुल गांधी के प्रतिनिधि किया करते थे. आम लोगों को स्मृति ईरानी से दूर रखा जाता है और चयनित लोग ही उन तक पहुंच पाते हैं. ऐसे में लोगों के बीच भाजपा के प्रति नाराजगी बढ़ रही है. इसलिए माना जा रहा है कि चुनाव बहुत कांटे का हो जाएगा.