देहरादून। दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र की ओर से 1-4 नवम्बर,2025 तक आयोजित उत्तराखण्ड राज्य स्थापना दिवस के रजत जयंती समारोह के कार्यक्रमों की श्रंखला का समापन आज विकास और पर्यावरण में संतुलन पर चर्चा और बहुभाषी कवि सम्मेलन के साथ हो गया।
प्रातःकालीन सत्र में आज विकास और पर्यावरण में संतुलन पर चर्चा का विशेष कार्यक्रम हुआ। इसमें प्रश्नोत्तरी, चर्चा और सवाल-जबाब के माध्यम से उत्तराखण्ड की प्रकृति, वन और वन्य जीवों के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण बातचीत हुई। दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के मुख्य सभागार में इस विषय पर प्रतिभागी वक्ताओं में हिमालयन विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. राजेन्द्र डोभाल, विजय जड़धारी, सामाजिक कार्यकर्ता और बीज बचाओ आन्दोलन के प्रणेता तथा लेखिका साधना जयराज शामिल रहीं। चर्चा का संचालन जयराज पूर्व प्रमुख वन संरक्षक, जयराज ने किया। इसमें वन्य प्रश्नोत्तरी में 10 स्कूलों से आये बच्चों ने प्रतिभाग किया।
कार्यक्रम के आरम्भ में गंगा नदी के अवतरण पर डॉ. श्रीजा सिंह और उनके साथियो द्वारा एक आकर्षक नृत्य गीत की प्रस्तुति भी दी गयी। डॉ. श्रीजा जो एक चिकित्सक भी हैं, उन्होनें नृत्य नाटिका के माध्यम सेमां गंगा के पृथ्वी पर अवतरण और आज के सन्दर्भ में उसकी स्थिति को दर्शाने का प्रयास किया। नृत्य नाटिका की थीम यह थी कि गंगा पूरे भारत की पहचान है। मान्यताओं के आधार पर उसका पृथ्वी पर अवतरण एक महान उद्देश्य के साथ हुआ। राजा सगर के 60,000 पुत्रों की आत्माओं को मुक्त करने के साथ ही वह आज भी मानव समाज को मुक्ति की राह दिखा रही है। परन्तु दुखद बात यह है कि हमारा समाज गंगा की पवित्रता को बनाए नहीं रख रहा है और प्रदूषण करके उसे क्षति पहुँचा रहा है।
कार्यक्रम मुख्य रूप से पर्यावरण और वन्यजीव संरक्षण तथा विकास पर केंद्रित रहा। वक्ताओं का मानना था कि प्राकृतिक सौंदर्य और जैव विविधता हमेशा से ही आकर्षण का केंद्र रही है। संरक्षण और विकास का संतुलन विषय पर परिचर्चा में उत्तराखंड वन विभाग के पूर्व प्रमुख जय राज ने राजेन्द्र डोभाल,विजय जड़धारी व साधना जयराज के साथ सार्थक संवाद किया। इसमें यह बात उभरकर आयी कि उत्तराखंड प्राकृतिक आपदाओं से बार-बार प्रभावित हुआ है। ऐसे में यह समय की मांग है कि हम उत्तराखंड के अस्तित्व के 25 वर्षों में विकास के दृष्टिकोण की गहनता से समीक्षा करें और संरक्षण अनुकूल विकास के रोडमैप के साथ आगे बढ़ने का प्रयास करें।
एक खुले प्रश्नोत्तर कार्यक्रम के माध्यम से स्कूली बच्चों के साथ प्रकृति और वन्यजीवों पर भी बात हुई। इसका संचालन साधना और जय राज द्वारा किया गया। जय राज ने कहा कि उत्तराखंड भी अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है। हमें अपनी मातृ के बारे में कितना पता है उसका इस प्रश्नोत्तर कार्यक्रम में बच्चों के साथ परीक्षण किये जाने का प्रयास किया गया है। इसके तहत सही उत्तर देने वालों को कई पुरस्कार भी दिए गये। इससे कार्यक्रम रोचकता बनी रही।
चर्चा में शामिल डॉ. राजेंद्र डबराल एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक व चिंतक श्री विजय जड़धारी एक प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और बीज बचाओ आन्दोलन के प्रणेता तथा श्रीमती साधना जयराज एक सुपरिचित सामाजिक कार्यकर्ता और आध्यात्मिक साधक हैं। जबकि जय राज एक भारतीय वन सेवा अधिकारी हैं, जो उत्तराखंड वन विभाग के प्रमुख पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। वह वर्तमान में उत्तराखंड जन सेवा मंच के अध्यक्ष हैं, जो समाज की सेवा और मानव और जानवरों की सहायता करने में जुटे हैं।
सायंकालीन सत्र में 3ः30 – 6ः00 बजे तक हिन्दी व उत्तराखण्ड की स्थानीय भाषाओं पर केन्द्रित कवि सम्मेलन का कार्यक्रम आयोजित होगा। हिन्दी के अलावा गढ़वाली,कुमाउनी व जौनसारी के इस बहुभाषी कवि सम्मेलन में उत्तराखण्ड के अल्मोडा, हल्द्वानी, बागेश्वर, पिथौरागढ़, चमोली, श्रीनगर, त्यूनी,हरिद्वार और देहरादून से पधारे 15 कवियों द्वारा मौलिक कविताओं का पाठ किया गया।
दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के मुख्य सभागार में आयोजित इस कविता पाठ सम्मेलन में मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण कविताओं के अलावा प्रकृति, सामाजिक जन जीवन से जुड़े विविध पक्षों पर कविताएं प्रस्तुत की गयां। आमंत्रित कवियों में डॉ. खेमकरन सोमन (हिन्दी ),हर्ष काफर (हिन्दी ),डॉ.नागेन्द्र गंगोला(हिन्दी ),डॉ. नवनीत सिंह(हिन्दी),सुप्रिया सकलानी(हिन्दी ),वृंदा शर्मा (हिन्दी),विनोद पंत (कुमाउनी),राजेन्द्र ढैला(कुमाउनी),डॉ. प्रदीप उपाध्याय,(कुमाउनी),आशीष सुन्दिरयाल(गढ़वाली),प्रिया देवली(गढ़वाली),राकेश जिर्वाण ’हंस’ (गढ़वाली) , नंदलाल भारती (जौनसारी) तथा अर्जुन दत्त (जौनसारी) ने अपनी एक से बढ़कर एक रचनाएं प्रस्तुत कीं। इस बहुभाषी कवि सम्मेलन का शानदार व सफल संचालन युवा कवि साहित्यकार डॉ. अनिल कार्की ने किया।
इस अवसर पर केन्द्र के निदेशक एन. रवि शंकर, पूर्व मुख्य सचिव श्री एन एस नपलच्याल, मुकेश नौटियाल, विनोद सकलानी, मेघा विल्सन, विजय भट्ट, अनिल भारती,शैलेन्द्र नौटियाल,सुन्दर सिंह बिष्ट, हर्षमणि भट्ट,जगदीश सिंह महर, मउन सिंह, मीनाक्षी कुकरेती, सुमन भारद्वाज सहित कई साहित्यकार ,लेखक, सामाजिक अध्येता,छात्र, युवा पाठक आदि उपस्थित रहे।

