देहरादून। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की (आईआईटी रुड़की) ने आईआईआईटीबी कॉमेट फाउंडेशन, आईआईआईटी बैंगलोर और मेंटिसवेव नेटवर्क्स प्राइवेट लिमिटेड के साथ एक महत्वपूर्ण समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इस समझौते के तहत एक खास रीकॉन्फिगरेबल इंटेलिजेंट सरफेस (आरआईएस) तकनीक का लाइसेंस दिया जाएगा। यह समझौता आईआईटी रुड़की में हुआ और यह वायरलेस संचार और रडार सिस्टम में नए शोध को बाजार तक पहुंचाने की दिशा में बड़ी उपलब्धि है। आईआईटी रुड़की के प्रो. एकांत शर्मा और आईआईआईटी बैंगलोर के प्रो. प्रेम सिंह के नेतृत्व में बनी शोध टीम ने इस नई तकनीक को तैयार किया है। इस आरआईएस डिज़ाइन में कई यूनिट सेल्स हैं, जिनमें अलग-अलग परतें और उन्नत आरएफ सर्किट हैं। यह तकनीक विद्युत चुम्बकीय संकेतों को तुरंत बदलने में सक्षम है, जिससे 6ळ नेटवर्क, स्मार्ट सेंसिंग सिस्टम और नए वायरलेस ढांचे में बड़े बदलाव हो सकते हैं।
आईआईटी रुड़की के निदेशक प्रो. के.के. पंत ने कहा आईआईटी रुड़की में हम चाहते हैं कि हमारा शोध समाज और उद्योग तक पहुंचे। यह तकनीक हस्तांतरण हमारे नवाचार आधारित विकास के संकल्प को दिखाता है और पुनर्संयोज्य आरएफ प्रणालियों में बड़ी सफलता है। यह सहयोग दिखाता है कि शिक्षा और उद्योग मिलकर स्वदेशी तकनीकों को दुनिया के स्तर तक ले जाने के लिए तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। आईआईटी रुड़की के कुलसचिव प्रो. विवेक मलिक ने कहा, ष्हम लगातार नए शोध को आगे बढ़ा रहे हैं और हमें गर्व है कि यह तकनीक अब वास्तविक दुनिया में इस्तेमाल होगी। मेंटिसवेव नेटवर्क्स के साथ यह साझेदारी दिखाती है कि शिक्षा और उद्योग मिलकर भारत की तकनीकों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे ला सकते हैं।
मुख्य आविष्कारक डॉ. एकांत शर्मा ने कहा, ष्यह तकनीक संचार और स्मार्ट सेंसिंग के क्षेत्र में क्रांति ला सकती है। हमें खुशी है कि हम आईआईटी रुड़की, आईआईआईटी बैंगलोर, कॉमेट फाउंडेशन और मेंटिसवेव नेटवर्क्स के साथ इस तकनीक को बाजार में ले जाने में सहयोग कर रहे हैं।
यह तकनीक भारत की अगली पीढ़ी की दूरसंचार क्षमता को दिखाती है और प्रयोगशाला से बाजार तक नवाचार को ले जाने के सभी भागीदारों के लक्ष्य को दर्शाती है। यह उपलब्धि भारत सरकार के आत्मनिर्भर भारत और डिजिटल इंडिया के लक्ष्य से जुड़ी है, जिसमें देश में ही महत्वपूर्ण तकनीकों का विकास और मजबूत स्वदेशी नवाचार पर जोर है। आईआईटी रुड़की इस तरह की साझेदारियों के जरिए तकनीकी स्वतंत्रता, स्टार्टअप विकास और नए क्षेत्रों में वैश्विक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दे रहा है।
पॉलिसीबाजार रिपोर्टः मोटर इंश्योरेंस क्लेम में 33 प्रतिशत की वृद्धि
-80 प्रतिशत लोगों के पास इंजन प्रोटेक्शन कवर नहीं, छोटे शहरों में हुए 75 प्रतिशत मानसून क्लेम
देहरादून। पॉलिसीबाजार के आंकड़ों के अनुसार मानसून के दौरान, औसत मोटर इंश्योरेंस क्लेम 30,000 से बढ़कर 40,000 हुई है, जिसमें 33 प्रतिशत की वृद्धि मुख्यतः पानी की वजह से इंजन फैलियर और इलैक्ट्रिकल खराबी के कारण हुए है। यह तीव्र वृद्धि इंजन प्रोटेक्शन ऐड-ऑन और सक्रिय मौसमी कवरेज योजना की महत्वपूर्ण आवश्यकता को दिखाती है। पॉलिसीबाजार डॉट कॉम में मोटर इंश्योरेंस के बिजनेस हेड, पारस पसरीचा ने कहा कि इस साल बारिश ने फ्लेक्सिबिलिटी की तुलना में अधिक रिस्क उजागर किए हैं। इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि 80 प्रतिशत लोग इंजन प्रोटेक्शन जैसे महत्वपूर्ण सुरक्षा कवर से अनजान हैं यह अंतर मैट्रो शहर और छोटे शहरों दोनों में देखा जाता है। जबकि दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, मुंबई, चेन्नई, पुणे, नासिक और बेंगलुरु जैसे महानगरों में सबसे अधिक क्लेम फाइल किए जाते हैं, नॉन मैट्रो शहरों में मानसून से संबंधित सभी मोटर इंश्योरेंस क्लेम का 75 प्रतिशत हिस्सा है, जो पूरे भारत में टियर-2 और टियर-3 शहरों की विशाल संख्या है। भारत की मानसून चुनौतियों की वास्तविकताओं के लिए बेहतर ढंग से तैयार रहने के लिए, वाहन मालिकों के लिए इंजन प्रोटेक्शन कवर, रोडसाइड असिस्टेंस, ज़ीरो डेप्रिसिएशन कवर आदि जैसे आवश्यक ऐड-ऑन चुनना महत्वपूर्ण है।” केवल 20 प्रतिशत पॉलिसीधारक इंजन प्रोटेक्शन ऐड-ऑन का विकल्प चुनते हैं, जबकि 80 प्रतिशत पॉलिसीधारक पानी से संबंधित इंजन डैमेंज के संपर्क में रहते हैं-जो मानसून के दौरान होने वाले सबसे महंगे और सबसे आम रिस्क में से एक है। हालांकि 50 प्रतिशत के पास जीरो डेप्रिशिएसन कवर है, फिर भी बाकी आधे लोगों को अधिक खर्च का सामना करना पड़ता है, जो मानसून के मौसम में सुरक्षा को देखते हुए एक महत्वपूर्ण अंतर की ओर इशारा करता है।